दमोह के मिशन अस्पताल में कर रहा था झोला छाप डॉक्टर काम। ली कई लोगों की जान। ऑपरेशन के दौरान मरीजों की हुई मौतें।मानव अधिकार कर रहा जांच।आइए जाने क्या है पूरा मामला।
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मिशन हॉस्पिटल में मौतों का मामला
दमोह के मिशन अस्पताल में कर रहा था झोला छाप डॉक्टर काम। ली कई लोगों की जान। ऑपरेशन के दौरान मरीजों की हुई मौतें।मानव अधिकार कर रहा जांच।आइए जाने क्या है पूरा मामला।
मानव अधिकार आयोग करेगा पूरे मामले की जांच
दमोह । कथित रूप से लंदन से आए कॉर्डियोलॉजिस्ट डॉ नरेन्द्र जॉन केम के हाथों हुई मौतों ने अब तूल पकड़ लिया है। जहां कलेक्टर दमोह अपने स्तर पर इन मौतों की जांच करवा रहे है वहीं 7 एवं 8 मार्च को मानव अधिकार आयोग दिल्ली की टीम पीड़ितों से मिलकर उनके ब्यान दर्ज करेगी और पूरे मामले की जांच करेगी। विदित हो कि बाल अधिकार संरक्षण आयोग के पूर्व अध्यक्ष एवं मानव अधिकार आयोग के सदस्य प्रियंक कानून गो के ट्वीट के बाद पूरा मामला प्रकाश में आया है। 13 मार्च को अस्पताल को नोटिस जारी कर खामोश बैठ जाने वाला प्रशासन जागा और कलेक्टर दमोह पुनः जांच करवाने की बात कहने लगे। जबकि 13 मार्च को मिशन अस्पताल को जारी कारण बताओ नोटिस में स्पष्ट उल्लेख है कि मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी के नेतृत्व में एक टीम ने पहले ही अस्पताल में हुई मौतों की जांच कर ली थी। फिर कलेक्टर दमोह द्वारा पुनः जांच की बात क्यों कही गई? 13 मार्च के नोटिस का 20 मार्च को जवाब मिलने के बाद अस्पताल प्रबंधन, कथित डॉक्टर नरेन्द्र जॉन केम एवं मौतों के लिए जिम्मेदार लोगों पर क्या कार्यवाही की गई? क्या प्रियंक कानून गो का ट्वीट नहीं आता तो निर्दोष लोगों की मौत की जांच ठंडे बस्ते में डाल दी जाती? जिला प्रशासन के समक्ष ये अहम सवाल है।
17 दिन तक खामोश क्यों रहा प्रशासन ?

दरअसल मासूम मरीजों की मौत का मामला बहुत पहले से ही कलेक्टर दमोह की जानकारी में आ गया था।13 मार्च 2025 को मिशन अस्पताल प्रबंधन की ओर से डॉक्टर नरेन्द्र जॉन केम द्वारा मेडिकल उपकरण चोरी किए जाने संबंधी एक शिकायत पत्र थाना कोतवाली में दिया गया। अपने शिकायती पत्र में अस्पताल प्रबंधन ने डॉक्टर नरेन्द्र जॉन केम पर इको पोर्टेबल टैब प्रोब सहित मशीन चोरी की शिकायत दर्ज करवाई थी। लेकिन शिकायत पत्र में ऑपरेशन के दौरान हुई मौतों का जिक्र नहीं था। वहीं 13 मार्च 2025 को ही कलेक्टर दमोह द्वारा मिशन अस्पताल प्रबंधन को कारण बताओ नोटिस जारी कर उपचार के दौरान लगातार मरीजों की मृत्यु होने पर अस्पताल से अपना पक्ष रखने को कहा गया था। पत्र में डॉक्टर नरेन्द्र जॉन केम द्वारा एंजियोप्लास्टी किए जाने के कुछ ही समय बाद 7 मृत्यु का उल्लेख किया गया है। पत्र में लेख है कि मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी के नेतृत्व में जांच दल ने जांच की जिसमें डॉक्टर नरेन्द्र जॉन केम द्वारा संस्था छोड़कर जाने, उनकी शैक्षणिक योग्यता का प्रमाणपत्र एवं मेडिकल काउंसिल का पंजीयन अंकित न होने से संदिग्ध प्रतीत होती है। जांच समिति ने अपनी जांच में पाया कि अस्पताल के रिकॉर्ड में जिस एंजियोप्लास्टी को सफल बताया गया था उसी मरीज की कुछ समय में संदेहास्पद मौत हो गई। कारण बताओ नोटिस में डॉक्टर नरेन्द्र जॉन केम की चयन प्रक्रिया, नियुक्ति प्रक्रिया एवं योग्यता के आधार पर अस्पताल प्रबंधन को पक्ष रखने हेतु कहा गया था। 20 मार्च 2025 को अस्पताल प्रबंधन ने अपना पक्ष रखते हुए अस्पताल में हुई मौतों को पूरी जिम्मेदारी इंटीग्रेटेड वर्कफोर्स यूनिक सॉल्यूशन प्राइवेट लिमिटेड, भोपाल पर डाल दी। अस्पताल प्रबंधन ने अपनी सफाई में कहा कि डॉक्टर नरेन्द्र जॉन केम की नियुक्ति आऊट सोर्स कंपनी द्वारा 18 दिसम्बर 2024 को अस्पताल एवं कंपनी के बीच हुए अनुबंध के अनुसार की गई थी, डॉक्टर के सम्मत दस्तावेजों एवं अन्य प्रमाण पत्रों का प्रमाणीकरण इंटीग्रेटेड वर्कफोर्स यूनिक सॉल्यूशन प्राइवेट लिमिटेड ने किया था। अस्पताल प्रबंधन ने अपने जवाब में कहा कि डॉक्टर नरेन्द्र जॉन केम ने मिशन अस्पताल में 12 फरवरी 2025 तक सेवाएं दी और उसके बाद वो लगातार अपने कर्तव्य से अनुपस्थित रहे। मिशन अस्पताल प्रबंधन ने अस्पताल में हुई मौतों के लिए डॉक्टर नरेन्द्र जॉन केम एवं डॉक्टर की नियुक्ति के लिए आउट सोर्स कंपनी को जिम्मेदार ठहराया है। वहीं अस्पताल प्रबंधन ने कथित डॉक्टर नरेन्द्र जॉन पर अस्पताल से महंगे चिकित्सा उपकरण के चोरी का इल्जाम भी लगाया है।

चार लाख की फीस में आया था आठ लाख रु महीने का हत्यारा डॉक्टर

इंटीग्रेटेड वर्कफोर्स यूनिक सॉल्यूशन प्रा लि भोपाल द्वारा मिशन अस्पताल दमोह को 18 सितंबर 2024 के अनुबंध के आधार पर कथित कॉर्डियोलॉजिस्ट डॉक्टर नरेन्द्र जॉन केम दमोह भेजा गया था। अनुबंध के 9 बिंदुओं में आउट सोर्स इंटीग्रेटेड वर्कफोर्स यूनिक सॉल्यूशन ने कॉर्डियोलॉजिस्ट देने के बदले डॉक्टर के एक महीने के भुगतान का 50% लेना तय किया था। डॉ नरेन्द्र जॉन केम को मिशन अस्पताल में 1जनवरी 2025 को सलाना 96 लाख रु के पैकेज पर नियुक्ति दी गई अर्थात 8 लाख रु प्रतिमाह। कंपनी ने अस्पताल प्रबंधन को कॉर्डियोलॉजिस्ट उपलब्ध करवाने के बदले 4 लाख 320 रु का बिल भेजा जिसके बदले 4 फरवरी 2025 को अस्पताल प्रबंधन ने बिल का 50% कंपनी के खाते में भुगतान कर दिया। इस दिन भी यानी 4 फरवरी को हत्यारे डॉक्टर नरेन्द्र जॉन केम के हाथों भरतला निवासी मंगल सिंह पिता गजराज सिंह की ऑपरेशनल दौरान टेबिल पर ही मौत हो गई थी।

मंगल सिंह ने भी ऑपरेशन टेबिल पर तोड़ा था दम

हत्यारे डॉक्टर द्वारा गरीब मासूम लोगों की जान लेने वाली सूची में एक नाम हिंडोरिया थाना ग्राम भारतला निवासी मंगल सिंह का भी है। 4 फरवरी को सुबह मंगल सिंह पिता गजराज सिंह को सीने में दर्द और घबराहट के चलते सुबह 7 बजे मिशन हॉस्पिटल भर्ती किया गया। जहां जांच करने में पहले 7500 रु और दवाई के नाम पर 7800 के इंजेक्शन बुलवाए गए। बाद में मरीज के परिजनों को बताया गया कि ऑपरेशन आयुष्मान कार्ड से हो जाएगा। अस्पताल स्टाफ ने मरीज के परिजनों को बताया कि लंदन से एक डॉक्टर आए है, वही ऑपरेशन करेंगे। लगभग 11-12 के बीच ऑपरेशन मंगल सिंह का ऑपरेशन हुआ और ऑपरेशन करने के बाद मरीज को सीधे वेंटीलेटर पर रख दिया गया। परिजनों को बताया गया कि एक दो घंटे में होश आ जायेगा। लेकिन लगभग साढ़े तीन बजे मंगल सिंह के परिजनों को उनकी मृत्यु की सूचना दी गई। अचानक मृत्यु होने पर परिजनों ने मृतक का पोस्टमार्टम करवाने की बात कही तो स्टाफ के लोगों ने परिवार जनों को समझाया कि क्यों मिट्टी की चीर फाड़ करवा रहे हो, जो होना था हो गया है। ये सारी बातें मृतक के बेटे जितेंद्र राजपूत ने बताई।
मानव अधिकार आयोग की टीम करेगी जांच

मिशन अस्पताल में हृदय शल्य क्रिया के दौरान हुई मौतों की जांच मानव अधिकार आयोग दिल्ली की टीम करेगी। मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी दमोह ने पांच मृतकों के नाम 7 एवं 8 मार्च को आयोग के सामने उपस्थित होकर साक्ष्य एवं ब्यान देने हेतु पत्र जारी किया है। जिन लोगों के नाम पत्र जारी हुआ उनके नाम सत्येंद्र सिंह राठौर, रईसा बेगम, इजराइल खान, बुद्धा अहीरवाल एवं मंगल सिंह राजपूत है। देखना यह है कि मानव अधिकार आयोग दिल्ली अपनी जांच में क्या निष्कर्ष निकालता है? ऑपरेशन के दौरान हुई मौतों के लिए किसे जिम्मेदार ठहराया जाता है? पूरे मामले में जिला प्रशासन की निष्क्रियता पर आयोग क्या सवाल खड़े करता है?
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