सुधरने का नाम नहीं ले रहे खाद्य औषधि प्रशासन के अधिकारी! कलेक्टर की फटकार के बाद भी नियमों को ताक पर रखकर की जा रही कार्यवाही!
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सुधरने का नाम नहीं ले रहे खाद्य औषधि प्रशासन के अधिकारी!
कलेक्टर की फटकार के बाद भी नियमों को ताक पर रखकर की जा रही कार्यवाही!
दमोह। जिले में खाद्य एवं औषधि प्रशासन की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। बीते कई वर्षों से विभाग द्वारा खाद्य विक्रेताओं और अस्पताल कैंटीनों पर अमानक खाद्य पदार्थ बेचने के आरोप में छापामार कार्यवाहियां की जा रही हैं। लेकिन इन कार्यवाहियों में संबंधित क्षेत्र के अनुविभागीय अधिकारी (एसडीएम) को शामिल न करना नियमों की सीधी अवहेलना है।
सूत्रों के अनुसार, मीडिया में छपी खबरों के बाद कलेक्टर दमोह ने साफ निर्देश दिए थे कि खाद्य विभाग की सभी कार्यवाहियां संबंधित क्षेत्र के एसडीएम के निर्देशन में ही होंगी। इसके बावजूद विभाग के जिम्मेदार अधिकारी खुलेआम कलेक्टर के आदेशों को दरकिनार कर मनमानी करने में लगे हुए हैं।

जिला अस्पताल की कैंटीन पर छापा, लेकिन खुद कार्यवाही पर सवाल
हाल ही में जिला अस्पताल परिसर में बिना पंजीयन के संचालित कैंटीन पर खाद्य सुरक्षा अधिकारी माधवी बुधौलिया और वरिष्ठ खाद्य सुरक्षा अधिकारी राकेश अहिरवाल ने संयुक्त कार्रवाई की। जांच में भारी अनियमितताएं उजागर हुईं
खाद्य सुरक्षा पंजीयन की प्रति नहीं मिली
फूड सेफ्टी डिस्प्ले बोर्ड गायब
गंदगी से भरा किचन

कर्मचारियों के पास न एप्रन, न ग्लव्स, न ही मेडिकल फिटनेस सर्टिफिकेट
घरेलू गैस सिलेंडरों का उपयोग, जिससे बड़े हादसे की आशंका
चौंकाने वाली बात यह है कि जिला अस्पताल जैसी संवेदनशील जगह पर सालों से यह कैंटीन बिना पंजीयन के चलती रही, जबकि खाद्य सुरक्षा विभाग का दफ्तर महज कुछ मीटर की दूरी पर है। यह सवाल खड़ा करता है कि अब तक विभागीय अधिकारी आंखें मूंदे क्यों बैठे रहे?

अनियमित कार्यवाही पर भी सवाल
कैंटीन को सील तो कर दिया गया, लेकिन अमानक खाद्य सामग्री का सैंपल तक नहीं लिया गया। मरीजों और उनके परिजनों को मिलने वाला पौष्टिक आहार भी सिर्फ कागजों तक सीमित रहा, कैंटीन में केवल समोसे, आलूबंडे और कचौरी जैसी तली-भुनी चीजें ही उपलब्ध थीं।

‘तानाशाही’ रवैये पर घिरा खाद्य विभाग
खाद्य एवं औषधि प्रशासन के मुखिया राकेश अहिरवाल लंबे समय से दमोह में पदस्थ हैं और अब उन पर तानाशाही रवैये के आरोप लग रहे हैं। कलेक्टर के आदेशों की जानकारी पूछे जाने पर मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी ने साफ तौर पर अनभिज्ञता जताई। इतना ही नहीं, उन्होंने यह भी कहा कि “वो हमारा फोन तक नहीं उठाते।” वहीं एसडीएम दमोह ने दो टूक कहा कि उनके क्षेत्र में होने वाली हर कार्रवाई उनके निर्देशन में होती है।

इससे बड़ा सवाल यह खड़ा होता है कि आखिर क्यों जिला प्रशासन को दरकिनार कर खाद्य औषधि प्रशासन मनमानी कर रहा है? और क्यों कलेक्टर को अलग से विभागीय मुखिया को आदेश देने की आवश्यकता पड़ती है?

अब देखना होगा कि जिला प्रशासन इस पूरे मामले में क्या रुख अपनाता है—क्या जिम्मेदार अधिकारियों पर कोई सख्त कार्रवाई होगी, या फिर दमोह की जनता अमानक खाद्य सामग्री और भ्रष्ट सिस्टम की मार झेलती रहेगी।
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