मध्य प्रदेश में सूखे के खतरे के बीच किसानों की सुध लेने वाला कोई नहीं!
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बड़ी बड़ी खबरों के बीच छूट जाती हैं महत्वपूर्ण छोटी खबरें जिनसे होता है जनता का सीधा सरोकार छोटी महत्वपूर्ण खबरों के लिए देखते रहे डेंजर भारत |
मध्यप्रदेश में सूखा के खतरे
प्रदेश वर्ष 1986-87, 1987-88, 2000-01, 2000-03, 2004-05, 2007-08 एवं 2009-10 में सूखे का सामना कर चुका है । वर्ष 2015-16 में प्रदेष के 51 जिलों में से 46 जिलों को सूखा प्रभावित जिला घोषित किया गया है ।

और जिसमें 2017 मैं मध्यप्रदेश सरकार ने राज्य के 13 जिलों की 110 तहसीलों को सूखाग्रस्त घोषित कर दिया था. प्रमुख सचिव राजस्व अरुण पाण्डेय ने जानकारी देते हुए बताया था, 13 जिलों की 110 तहसीलों को सूखा प्रभावित घोषित किया गया है. इन इलाकों में जिला अशोकनगर की सात, भिण्ड की आठ, छतरपुर की 11, दमोह की सात, ग्वालियर की पांच, इंदौर की पांच, पन्ना की नौ, सागर की 11, सतना की 10, शिवपुरी की नौ, सीधी की सात, टीकमगढ़ की 10 और विदिशा की 11 तहसीलों को सूखा प्रभावित घोषित किया गए थे!

इस बार भी मध्यप्रदेश में कम बारिश होने से किसान सोशल मीडिया पर अपने अपने खेतों की तस्वीरें डालकर यह साबित करने में लगे हैं कि हमारे तहसील को सूखा घोषित किया जाए इस पर विपक्ष कोई ध्यान नहीं दे रहा बल्कि 2017 के सूखे के समाचार सोशल मीडिया पर वायरल कर जनता को भ्रम फैलाने में लगे हैं अभी तक मध्य प्रदेश सरकार द्वारा किसी भी जिले को सूखा ग्रस्त घोषित नहीं किया गया लेकिन यह बात भी सही है कि इस बार कम बारिश होने से यह स्थिति 2017 से भी अधिक खराब बनी हुई है इस पर मध्य प्रदेश सरकार को भी ध्यान देना चाहिए कि जिन जिन तहसीलों में कम पानी गिरा है और वास्तव स्थिति में जहां सूखे जैसे हालात निर्मित हैं वहां पर सूखा घोषित कर किसानों को बीमा की राशि दिलवाने का कार्य जल्द से जल्द किया जाए ताकि किसानों में कोई भी भ्रम ना फैला सके
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