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गौर राधारमण जू का 33 वां पाटोत्सव महामहोत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया गया। डेंजर भारत प्रमुख तनुज पाराशर

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श्री गौर राधारमण जू का 33 वां पाटोत्सव महामहोत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया गया।

दमोह – श्री गौर राधारमण जू का शुभ पाटोत्सव महा महोत्सव 22 मई से 24 मई तक श्री गौर राधा रमण मंदिर में मंदिर के प्रतिष्ठाता श्री बिरही जी महाराज के कृपा पात्र नित्य लीला प्रविष्ट श्री श्री 108 श्री चक्रधर प्रसाद शास्त्री जी महाराज के प्रिय शिष्य वर्तमान आचार्य श्री हरे कृष्ण दास ब्रह्मचारी जी महाराज के पावन सानिध्य में बड़े ही उत्साह पूर्वक मनाया गया, जिसमें प्रातः 5:00 बजे मंगल आरती के पश्चात श्री हरि नाम संकीर्तन एवं रात्रि 7:30 से 9:30 बजे तक भजन संकीर्तन एवं धर्म प्रवचन हुए एवं पुनः प्रातः 7:00 से एक विशाल हरि नाम संकीर्तन शोभायात्रा मंदिर से प्रारंभ होकर शहर के मुख्य मार्गो से भ्रमण करते हुए श्री मंदिर में ही समाप्त हुई। शोभायात्रा में सागर भोपाल खुरई बीना कोटा नरयावली बंडा बनगांव गैसाबाद हिनौता छतरपुर आदि अनेक शहरों एवं ग्रामीण अंचलों से भक्त संकीर्तन में सम्मिलित हुए। शोभायात्रा में जगह-जगह श्री ठाकुर जी की आरती एवं फूल माला प्रसाद आदि से पूजन किया गया।


रात्रि के प्रवचन में श्री हरे कृष्ण दास ब्रह्मचारी जी महाराज ने श्री विग्रह प्रतिष्ठा का महत्व बताया और कहा कि संत द्वारा प्रतिष्ठित श्री विग्रह सेवा साक्षात भगवान की सेवा है भगवान विग्रह रूप से आपकी हर सेवा को ग्रहण करते हैं आपने भक्तमाल एवं शास्त्रों के प्रमाण देकर कहा कि श्री विग्रह मात्र पत्थर लकड़ी धातु नहीं वरन साक्षात श्रीहरि हैं जो भक्त के अधीन रहकर सभी सेवा ग्रहण करते हैं मूर्ति बोलती, चलती खाती पीती आदि क्रियाएं भक्तों के साथ करती है।

भगवान भाव ग्राही हैं भक्तों के भाव के अनुसार भगवान की प्राप्ति होती है हमें सद्गुरु का साथ नहीं उनकी वाणी में विश्वास नहीं है हदय में भाव नहीं इसलिए हम अपनी जड़ इंद्रियों द्वारा भगवान की दिव्यता चिन्मयता अनुभूति नहीं कर पाते
यथार्थ में हम भगवान को नहीं चाहते भगवान से चाहते हैं इसलिए भगवान भी हमें जड़ पदार्थों को प्रदान कर हमें अपनी विशुद्ध भक्ति सेवा से दूर कर देते हैं

आपने कहा कि यह युग कलयुग है इसमें पापाचार दुराचार व्यभिचार अनाचार आदि दोष है इसमें सभी मानव समाज लिप्त है यदि हम चाहे कि कलयुग के दोषों से बचकर मानव जीवन को सार्थक बनाने तो निष्कपट भाव से श्री चैतन्य महाप्रभु के विग्रह भक्ति का चरणाश्रय ग्रहण कर उनके उपदेश अनुसार अपने जीवन को चलाते हुए युगधर्म श्री हरि नाम संकीर्तन का आश्रय ग्रहण करें श्री हरि नाम के सिवाय अन्य साधन इस युग में भगवत प्राप्ति नहीं करा सकते।

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