दमोह तहसील में रिश्वतखोरी का आलम: तहसीलदार रॉबिन जैन पर पत्रकारों को परेशान करने के आरोप जनता ही नहीं, अब पत्रकार भी तहसीलदार की मनमानी से त्रस्त
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दमोह तहसील में रिश्वतखोरी का आलम: तहसीलदार रॉबिन जैन पर पत्रकारों को परेशान करने के आरोप जनता ही नहीं, अब पत्रकार भी तहसीलदार की मनमानी से त्रस्त
केवाईसी और सीमांकन के लिए महीनों से चक्कर लगा रहे लोग
सीएम हेल्पलाइन भी बेअसर:
तहसीलदार पर मिलीभगत के आरोप, पत्रकारों को भी करनी पड़ रही शिकायत
दमोह तहसील में घूसखोरी के हालात, जनता और पत्रकार दोनों परेशान

बड़ी-बड़ी खबरों के बीच छूट जाती है छोटी महत्वपूर्ण खबरें जिनसे होता है जनता का सीधा सरोकार छोटी महत्वपूर्ण खबरें देखने के लिए देखते रहे डेंजर भारत 7000412524(तनुज पाराशर दादा भाई)
दमोह तहसील में भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी का स्तर लगातार बढ़ता जा रहा है। स्थिति यह है कि अब आम जनता ही नहीं, बल्कि पत्रकारों तक को अपने काम के लिए महीनों तक चक्कर काटने पड़ रहे हैं। छोटे-छोटे राजस्व कार्य जैसे भूलेख, सीमांकन और डायवर्सन जैसी प्रक्रियाएं भी अब पैसों की लेनदेन पर निर्भर होती दिख रही हैं।

सूत्रों के अनुसार, तहसीलदार रॉबिन जैन की देखरेख में काम हो या केवाईसी प्रक्रिया — बिना जेब गर्म किए काम आगे नहीं बढ़ता। शासन द्वारा जारी प्रणाली में पटवारी की आईडी से केवाईसी शुरू होकर तहसीलदार की आईडी से स्वीकृत होती है, लेकिन यह एक मिनट का कार्य भी हफ्तों और महीनों में बदल दिया गया है। लोगों का कहना है कि यह देरी सिर्फ इसीलिए की जाती है ताकि आवेदक थककर पैसे देने को मजबूर हो जाए।
पत्रकारों के साथ भी हो रही मनमानी
आश्चर्यजनक बात यह है कि तहसीलदार पर अब पत्रकारों को परेशान करने के भी आरोप लग रहे हैं।

एक स्थानीय पत्रकार, जिन्होंने अपनी जमीन का सीमांकन कराने के लिए आवेदन दिया था, पिछले 10 दिनों से तहसीलदार के कार्यालय के चक्कर काट रहे हैं। तहसीलदार रोज़ उन्हें “10 मिनट में आ रहा हूं” कहकर टाल देते हैं, लेकिन दिनभर इंतज़ार के बाद भी काम नहीं होता।
दूसरे पत्रकार को भी उनकी मृत माता के नाम हटाने के लिए लगातार परेशान किया जा रहा है। माँ के निधन के बाद बंटवारा पूरा हो जाने के बावजूद उनका नाम अभी भी राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज है, जिससे किसान निधि की राशि मृत व्यक्ति के खाते में जा रही है। शिकायत करने और खबर प्रकाशित करने के बावजूद भी प्रशासनिक स्तर पर कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है।
सीएम हेल्पलाइन भी नहीं दे रही राहत
जब जनता या पत्रकार सीएम हेल्पलाइन 181 पर शिकायत करते हैं, तो अधिकारी अपनी ऊपरी सांठगांठ से शिकायतों को “फोर्स क्लोज” करवा देते हैं।

शिकायतकर्ता को न्याय मिलने की बजाय, अब उन्हें “आदतन शिकायतकर्ता” बताकर निशाने पर लिया जा रहा है। मुख्यमंत्री द्वारा यह बयान कि “बार-बार शिकायत करने वालों की सूची तैयार की जाए” अब ईमानदार शिकायतकर्ताओं के लिए नई मुसीबत बन गया है।
जनता पूछे — जब पत्रकार की सुनवाई नहीं, तो आम आदमी कहां जाए?
जनता की उम्मीद हमेशा मीडिया से होती है कि उनकी आवाज़ प्रशासन तक पहुंचे, लेकिन जब स्वयं पत्रकारों की बात भी प्रशासन नहीं सुन रहा, तो आम जनता कहां जाए?
अब सवाल यह उठता है कि कलेक्टर दमोह इस पूरे मामले में क्या कार्रवाई करेंगे। क्या तहसील में फैले भ्रष्टाचार और अधिकारी-कर्मचारियों की मिलीभगत पर कोई सख्त कदम उठाया जाएगा या यह मामला भी अन्य शिकायतों की तरह दबा दिया जाएगा?
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