दमोह जिला अस्पताल में पदस्थ डॉक्टर खेल रही लोगों की आंखों से। चंद पैसे कमाने के चलते लोगों की आंखों से कर रही खिलवाड़।
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दमोह जिला अस्पताल में पदस्थ डॉक्टर खेल रही लोगों की आंखों से। चंद पैसे कमाने के चलते लोगों की आंखों से कर रही खिलवाड़।
दमोह जिला अस्पताल में पदस्थ नेत्र चिकित्सा में ड्यूटी कर रही डॉक्टर सुधा राय द्वारा जिला अस्पताल को उन्होंने लोगों की आंखों से खेलने का अड्डा बना रखा है जहां पर लोग अच्छे एवं फ्री इलाज के चलते सरकारी जिला अस्पताल में अपनी आंखें दिखाने आते हैं वही सुधा राय सरकारी अस्पताल को अपने निजी क्लीनिक में मरीज को पहुंचाने का अड्डा बनाए हुए हैं आपको बता दें कि जिला अस्पताल में अपनी आंखें चेक कराने वाले कई मरीजो ने बताया
कि सुधा राय और अस्पताल में पदस्थ नेत्र चिकित्सा डिपार्टमेंट के कर्मचारी लोगों से अच्छा बिहेव भी नहीं करते ना ही उनकी आंखें सही तरीके से चेक करते हैं जबकि सरकार द्वारा लेटेस्ट से लेटेस्ट मशीन सरकारी अस्पताल को मुहैया कराई गई है उसके बावजूद भी लोगों को महज टीवी में कुछ अक्षर दिखाकर कुछ भी नंबर दे दिया जाता है और कहते हैं चश्मा बाजार से बनवा लो जब उसी
नंबर का चश्मा बनवाया जाता है तो मरीज को आंखों में कई प्रकार की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है यही वजह है कि फिर लोग मजबूरी में डॉक्टर सुधा राय के घर पर बने प्राइवेट क्लीनिक पर दिखाने जाते हैं तो वहां पर उन्हें वही डॉक्टर अच्छा व्यवहार और सही तरीके से चेक कर सही नंबर दिया जाता है जिससे जिला अस्पताल में पदस्थ डाक्टर सुधा राय द्वारा लोगों से चश्मा बनवाने
में ₹1000 कमा लेती हैं तो फीस के तौर पर ₹300 और दबाओ के जरिए करीब हजारों रुपए मरीज से वसूलने के बाद लोगों को सही नंबर दिया जाता है जिससे वह सही से देख व पढ़ पाते हैं ऐसा ही एक मरीज के साथ जिला अस्पताल में हुआ उसने अपनी आपबीती बताते हुए बताया कि प्रधानमंत्री द्वारा सभी गरीब लोगों को निशुल्क और सस्ता इलाज दिलाने के उद्देश्य से सरकारी अस्पताल में अच्छे डॉक्टर और करोड़ों रुपए की इलेक्ट्रॉनिक उपकरण इन डॉक्टरों को मुहैया कराए जाते हैं ताकि गरीबो का अच्छे से अच्छा इलाज हो सके और जिला अस्पताल में लोगों को मुफ्त दबाए दी जाती हैं और यहां तक कि अगर बाजार की दवाएं लिखी भी जाएं तो वह प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र की दवाएं लिखी जाती है जो बाजार से 70 से 80 परसेंट कम दामों की दवाएं होती हैं जिससे लोगों को बीमारी में हजारों रुपए खर्च नहीं करने पड़ते ना ही बीमारी के होने वाले खर्च के चलते किसी गरीब को कर्ज नहीं लेना पड़ता लेकिन भले देश के प्रधानमंत्री लोगों की चिंता करते हुए इन डॉक्टरों को लाख सुविधा दे दें लेकिन वह सुविधाए इनके द्वारा जनता तक नहीं पहुंचाई जा रही उल्टा इन्होंने सरकारी अस्पताल को अपनी प्राइवेट क्लीनिक में पहुंचने का एक अड्डा बना रखा है जिला अस्पताल में सप्ताह में मात्र 1 से 2 दिन ही बैठती हैं बाकी दिन उनके हेल्पर मरीज को मैडम के बंगले पर जाने की सलाह देते दिखाई देते हैं जिससे प्रतिदिन दमोंह की सुधा राय लाखों रुपए कमा रही हैं मरीज ने बताया कि सरकारी अस्पताल में मुझे जो नंबर दिया था BE +1.00 यह नंबर मैंने प्राइवेट चश्मे की दुकान से बनवाया जिसे लगाने के बाद मुझे आंखों में तकलीफ और सर दर्द जैसी परेशानी हफ्तों बनी रही तब तकलीफ और बढ़ती गई तब जाकर में डॉक्टर सुधा राय के घर पर प्राइवेट क्लीनिक पहुंची वहां पर उन्होंने हमें दोबारा से चेक किया और यह नंबर दिया
राइट आई – 0.75 180′ add + 1.25 लेफ्ट आई -1.75 160′ add+1.25 और यह नंबर बनवाने के लिए कहा यह नंबर फिर से बनवाने में हमें चश्मा और नंबर के साथ ₹2000 अतिरिक्त खर्च आया और फीस के साथ-साथ दवाई भी इन्हीं के प्राइवेट क्लीनिक में से लेनी पड़ी जिससे मुझे करीब 2000 से अधिक का खर्च हुआ तब जाकर मुझे आंखों में रिलीफ महसूस हुआ कहने का मतलब इतना सा है कि यही सरकारी अस्पताल में पदस्थ मैडम अगर मुझे अस्पताल में सही से चेक कर अच्छा नंबर दे देती तो आज मेरे हजारों रुपए बच जाते और मुझे कई दिनों तक अपनी आंखों में होने वाली परेशानी से भी दो चार नही होना पड़ता मैडम मेरी आंखों से इसलिए खेलती रही ताकि मैं उनकी प्राइवेट क्लीनिक में जाकर अपनी आंखें चेक करवाऊं और मैडम कुछ हजार रुपए कमा सके।
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