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नियमों को ताक पर रखकर अपने लोगों को दिलाया जा रहा सरकारी अनुदान शिकायत करने पर काट रहे नोटिस।

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नियमों को ताक पर रखकर अपने लोगों को दिलाया जा रहा सरकारी अनुदान शिकायत करने पर काट रहे नोटिस।

दमोह । प्रधानमंत्री की महत्वकांक्षी मत्स्य संपदा योजना को जिले के अधिकारी चूना लगा रहे हैं। मत्स्यउद्योग दमोह जिला में कार्यरत अधिकारी योजना के नाम पर जिले के धन्नासेठों को इस योजना का लाभ पहुंचा रहे हैं। धन्नासेठों को लाखों के अनुदान का लाभ भी दिया जा रहा है। दरअसल प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना भारत के मत्स्य क्षेत्र के सतत विकास के लिए नील क्रांति के तहत 10 सितंबर 2020 को लागू की गई थी। देश के प्रधानमंत्री के

नाम से शुरू इस योजना का मकसद मछुआरा समुदाय, आदिवासी समुदाय के लोगों को रोजगार देना और उन्हें आर्थिक रूप से सुदृढ़ बनाना था एवं पर्यावरण के दृष्टिकोण से लगातार गिर रहे जल स्तर को सुधारने की भी इस योजना से पर्यावरण को भी लाभ मिल सके इस मनसा से बनाई गई यह योजना। लेकिन दमोह जिले में पदस्थ मत्स्य अधिकारी द्वारा योजना का लाभ ऐसे हितग्राहियों को दे दिया गया जो पहले से आर्थिक रूप से सक्षम है, और जिले के बड़े ठेकेदार और धन्नासेठों में इनकी गिनती है जिन्हें मछली पालन का कोई अनुभव नहीं है। चट मगनी पट ब्याह की तर्ज पर फटाफट अधूरे भरे आवेदनों को स्वीकार करते हुए जिले के पटेरा जनपद के ग्राम जामाटा कुंवरपुर निवासी भरत पटेल और उनकी माता श्रीमती कृष्णा बाई पटेल को इस योजना का लाभ दे दिया गया। खास बात यह हैं की एक ही परिवार के माता एवं पुत्र को योजना में लाभार्थी बना दिया गया है।

योजना के अंतर्गत आवेदकों को 9.90 लाख रु का अनुदान भी दिया गया है। खासबात यह हैं की योजना के तहत जिस तालाब को खोदने की बात की जा रही है वहां कोई तालाब है ही नही। मौके पर खेती की जा रही थी। जिसकी शिकायत मुख्यमंत्री हेल्प लाइन पर बार बार की गई। लेकिन निरंकुश हो चुके मछली विभाग के अधिकारियों के कान पर जूं भी नही रेंगी। सीएम हेल्प लाइन पर पहली शिकायत 11 जनवरी 2023 को की गई थी लेकिन शिकायत की जांच करने की बजाए अधिकारियों द्वारा योजना के भ्रष्टाचार को छुपाने के लिए शिकायत को फोर्स क्लोज्ड कर दिया गया। शिकायत बंद होने के बाद दूसरी शिकायत 7 मार्च 2023 को पुनः की गई लेकिन मछली विभाग के अधिकारी शिकायत की जांच करना ही नहीं चाहते थे, अतः इसे भी सेटिंग कर फोर्स क्लोज्ड करवा दिया गया। तीसरी शिकायत 2 अप्रैल 2024 को की गई।

तीसरी शिकायत पर विभाग द्वारा कार्यवाही करते हुए शिकायत कर्ता पर ही झूठी शिकायत का आरोप लगा दिया गया और अपने पत्र क्रमांक/मत्स्य/तक/2024/14 दिनाक 5/4/2024 के माध्यम से शिकायत कर्ता को सात दिवस में साक्ष्य प्रस्तुत करने हेतु लेख किया गया। सवाल उठता है कि विगत एक साल से लगातार शिकायत करने के बाद भी विभाग द्वारा न तो शिकायत कर्ता को किसी तरह का पत्र जारी किया गया और न ही शिकायत से संबंधित साक्ष्य प्रस्तुत करने हेतु लेख किया गया। चुपचाप शिकायतों को कचरे के डब्बे में डाल दिया गया। यहां यह भी उल्लेखनीय है की अधिकारी मुख्यमंत्री हेल्प लाइन की शिकायतों को किस तरह हवा में उड़ा कर शिकायतों की जांच किए बिना ही उसे बंद कर देते हैं जबकि स्वयं क्लेटर द्वारा सीएम हेल्प लाइन की हर सप्ताह समीक्षा बैठक की जाती है। देखना यह है की मत्स्य अधिकारी के हठ के आगे जिला प्रशासन प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना की जांच करवा पाता है या नही।


प्रधानमंत्री की महत्वकांक्षी मत्स्य संपदा योजना का लाभ प्रधानमंत्री की मनसा अनुसार ना तो आदिवासियों को मिल रहा है ना रैकवार माझी समाज को ना इस योजना से पर्यावरण को फायदा हो रहा है। फायदा हो रहा है तो सिर्फ अधिकारियों को और बड़े-बड़े ठेकेदार धन्नासेठों को जबकि प्रधानमंत्री की मनसा अनुसार इस योजना से गरीब तपके और भूमिहार जैसी समाज से आने वाले मजदूर वर्ग को मिलना था। शिकायतों पर पर्दा डालने वाले अधिकारियों द्वारा शिकायतकर्ता पर दबाव बनाने के उद्देश्य से साक्ष्य प्रस्तुत करने का नोटिस काटा गया है जबकि एक साल से लगातार हो रही शिकायतों पर कभी इन अधिकारियों का ध्यान नहीं गया।

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