गैरों पर सितम अपनों पर रहम ऐसी हो रही है जिला स्वास्थ्य अधिकारी द्वारा कार्यवाही सरकारी डाक्टर के निजी क्लीनिक पर कार्यवाही से बचता स्वास्थ्य विभाग।
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गैरों पर सितम अपनों पर रहम ऐसी हो रही है जिला स्वास्थ्य अधिकारी द्वारा कार्यवाही सरकारी डाक्टर के निजी क्लीनिक पर कार्यवाही से बचता स्वास्थ्य विभाग।
जिले में प्रशासन द्वारा इन दिनों झोलाछाप मेडिकल प्रेक्टिसनर और बिना लाइसेंसधारी मेडिकल प्रेक्टिस कर रहे लोगों पर कार्यवाही का दौर जारी है। हालांकि खबरों में आता रहता है कि एक ओर जहां प्रशासन और जिला स्वास्थ्य विभाग कार्यवाही करके जाता है वहां फिर से प्रेक्टिस चालू हो जाती है। दरअसल झोलाछाप प्रेक्टिसनर के ऊपर स्वास्थ्य विभाग द्वारा की जा रही कार्यवाही दिखावटी ज्यादा है और नाम मात्र के लिए की जा रही है इसी का नतीजा है कि झोलाछाप प्रेक्टिसनर फिर अपनी दुकान चालू कर देते हैं।
एक सूचना मीडिया को जिला स्वास्थ्य विभाग द्वारा और दी गयी कि जिले में रजिस्टर्ड मेडिकल प्रेक्टिसनर जो अपनी क्लीनिक चला रहे थे इनके द्वारा क्लीनिक रजिस्ट्रेशन को नवीनीकृत ना कराने के कारण 112 क्लीनिक निरस्त कर दिये गये हैं। इस कार्यवाही में भी स्वास्थ्य विभाग पर मुंह देखी कार्यवाही किये जाने के आरोप लग रहे हैं।
सभी जानते हैं कि जिला अस्पताल सहित ब्लाक स्तर पर पदस्थ अनेक बड़े बड़े सरकारी डाक्टर अपनी अपनी क्लीनिक चला रहे हैं।
बड़ी बात तो यह है कि जिला स्वास्थ्य विभाग के गेट के सामने ही कुछ सरकारी डॉक्टर अपनी निजी क्लीनिक चला रहे हैं जो बगैर लाइसेंस और बग़ैर रजिस्ट्रेशन अपनी निजी क्लीनिक संचालन कर रहे हैं ऐसे सरकारी डॉक्टरों पर जिला स्वास्थ्य विभाग द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की गई ना ही इनके लाइसेंसों के बारे में इनसे पूछा गया जब हमारे द्वारा कुछ डॉक्टरों को फोन लगाकर उनसे
क्लीनिक चलाने के लिए लाइसेंस के बारे में पूछा तो दमोह जिला अस्पताल में पदस्थ डॉक्टर विक्रांत सिंह द्वारा पहले सीना ठोककर कहा गया मेरे पास नहीं है लाइसेंस। फिर कुछ देर बाद दोबारा से खुद ही फोन लगाकर गोल-गोल बातें करते हुए बताया कि मैंने अपनी प्राइवेट क्लीनिक बंद कर दी है जब से मैं जिला अस्पताल में संविदा से पक्के में डॉक्टर हुआ हूं तब से मैंने अपनी प्राइवेट
क्लीनिक बंद कर दी है जबकि जिला अस्पताल के सामने वृद्ध आश्रम के बाजू में अभी कुछ ही दिन पहले नगर पालिका द्वारा उनके क्लीनिक के बोर्ड और टीन सेट को अतिक्रमण होने की वजह से निकाला गया था उस बोर्ड में साफ और बड़े अक्षरों में इनका नाम और क्लिनिक लिखा हुआ था और आज भी यह उसी मेडिकल की आड़ में अपना क्लीनिक चला रहे हैं लेकिन गुमराह करने और अपनी गलती छुपाने के लिए तरह-तरह के बहाने बनाते नजर आए। ऐसे ही आयुष विभाग मे पदस्थ डॉक्टर राजकुमार
पटेल द्वारा अपनी प्राइवेट क्लीनिक जिला अस्पताल के सामने चलाई जा रही है यह तो और भी गजब हैं इन्हें तो डॉक्टर होने के बावजूद भी पता ही नहीं की प्राइवेट क्लीनिक चलाने के लिए जिला स्वास्थ्य विभाग से लाइसेंस लिया जाता है उल्टा जिला अस्पताल में दूसरे डॉक्टर जो अपनी प्राइवेट क्लीनिक चला रहे हैं उनका हवाला देते हुए कहने लगे उनके पास भी लाइसेंस नहीं है तो मैंने कहा अगर वह कोई गलती करते हैं तो क्या आपको भी गलती करने का लाइसेंस मिल जाता है। यह भी अपनी गलतियों पर पर्दा डालने व बगैर लाइसेंस के अपनी प्राइवेट क्लीनिक चलाने की गलती छुपाने के लिए ऊल जलूल और यहां वहां की बातें करते नजर आए इन्हें मालूम है कि जिला अस्पताल में पदस्थ जिम्मेदार डॉक्टर बगैर लाइसेंस के अपनी प्राइवेट क्लीनिक चला रहे हैं तो भला मेरे ऊपर यह क्या कार्यवाही करेंगे क्योंकि मैं तो आयुष विभाग से हूं।
जिला अस्पताल में पदस्थ महिला डॉक्टर महिला चिकित्सक और भी कई डॉक्टर सरकारी निवास जो जिला अस्पताल के सामने है उसी में ही अपनी प्राइवेट क्लीनिक चला रहे हैं जहां पर रोजाना हजारों मरीजों का इलाज किया जा रहा है।
विभागीय अधिकारी इसका जवाब देने से बचते नजर आ रहे हैं।
विभाग के सूत्रों का कहना है कि हर मेडिकल प्रेक्टिसनर चाहे वह सरकारी नौकरी में हो या नहीं यदि वह क्लीनिक संचालित कर रहा है तो उसे क्लीनिक का अलग लाइसेंस लेना चाहिए लेकिन सरकार द्वारा कुछ समय पहले सरकारी डाक्टर द्वारा क्लीनिक संचालन पर रोक लगा दी गयी थी जिसके बाद कुछ डाक्टर कोर्ट की शरण में गये थे। लेकिन इस विषय में उच्च विभागीय कार्यालय से कोई अन्य निर्देश प्राप्त नहीं हुए हैं। इसका मतलब तो यही निकलता है कि या तो जिले में सरकारी सेवा में संलग्न डाक्टर निजी क्लीनिक चला नहीं सकते या फिर बिना लाइसेंस लिए ही अवैध क्लिनिक संचालित कर रहे हैं।
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